अब मैं जरा थकने लगा हूं



अब मैं जरा थकने लगा हूं 
जीवन की गाड़ी 
खींचते खींचते 

अब मैं जरा थकने लगा हूं
 हर पल का संघर्ष 
पल- पल फरेब
अपनों के मध्य 
अपना ढूंढने लगा हूं 
अब मैं जरा थकने लगा हूं 
निश्छल बचपन, हंसी ठिठौली 
भाई-बहन  में तकरार 

जवानी की उमंगे तरंगे 
विस्मृत करने लगा हूं 
अब मैं जरा थकने लगा हूं 
अनंत इच्छाओं में से 
बहुत कुछ ना पाकर 
बोझिल होने लगा हूँ

अब मैं जरा थकने लगा हूँ
अधूरी इच्छाएं चिल्लर सी 
बिखरी पड़ी है
और मैं अपनों के दंश से घायल पड़ा हूँ
अब मैं जरा थकने लगा हूं 

तने हुए एहसास 
और बिके हुए ज़मीर के जद्दोजहद में
 आस्तीन के सांपों 
को दूध पिलाता रहा हूं 
अब मैं जरा थकने लगा हूं 
अब मैं जरा थकने लगा हूँ
(राजेंद्र कुमार बाजपेयी)
सहायक अभियंता