माँ

माँ
माँ

प्रसव पीड़ा का दर्द वो भूल जाती है
जब देखती है अपनी संतान फूल सा खिल जाती है

भर आता है छाती में अमृत प्राकृतिक
जी भर छाती से लगाकर उसको अमृत पान कराती है
समय का चक्र चलता रहता है जो चलता ही है सदा
वही संतान जब उसे वृद्ध आश्रम में छोड़ के चली जाती है

प्रसव पीड़ा की वेदना, दर्द दिखता है उसके चेहरे पर
भर आता है पानी रवारा उसकी आँखों में स्वत:

सिर्फ और सिर्फ बहते रहने के लिये


(राजेन्द्र शर्मा)
आकाशवाणी, भोपाल