क्या है खुशी

// क्या है खुशी //


 आओ पल दो पल बात करले 
खुशियों का इजहार कर ले 
यह दुख जीवन भर संग रहेंगे 
ना इससे अब हम तंग रहेंगे 

हर दुख देता है खुशी को नई परिभाषा 
लाता है इस उपवन में फिर से नहीं आशा सोचता हूं 
मैं वह दुनिया कैसी होती
 जहां गम का निशान होता 
खुशियां ही खुशियां होती 
क्या खुशी-खुशी रह पाती ?
खुशी गम न बन जाती 
खुशी की चाह में गम हम पालते हैं 
गर खुशी मिल जाए तो क्या हम खुश रहने आदत डालें 
हर खुशी एक नई खुशी की चाह पैदा करती है 
और वह खुशी क्या फिर हम को खुश खुश करती है 

जो खुशी ढूंढते हैं हम दर-बदर 
वह क्या बाहर विचरती है 
झांक कर देखो अपने घर में 

वह तो घुट-घुट कर मरती है 
वह तो घुट-घुट कर मरते है 
  

शशिकांत 
वरिष्ठ उपमहानिदेशक  अभियांत्रिकी 
एनएबीएम दिल्ली